ऋतुराज वसंत
शिशिर समीर सुखद बह वायु ।
मधुमय सुरभित – पोषक आयु ।।
विगत शीत उष्राता लाकर ।
वन उपवन जागृति जगाकर ।।
विटप वृन्द वट पीपल पर्कट ।
पत्र हीन सब दिखते सरपट ।।
नव किशलय मंजरि सुहाती ।
कोकिल मीठे स्वर में गाती ।।
खेतों में वालों फूलों से ।
भौंरो का रसपान सुयश है ।।
भीनी – भीनी गंध सुहानी ।
जाड़े की अब गयी जवानी ।।
गर्मी का एहसास दिलाकर ।
ओसों पर मोती विखराकर ।।
सुबह प्रभाकर जीवन भरकर ।
जग को उर्जावान बनाकर ।।
उतरे उपवन में ऋतुराज ।
पहन कुसुम कलियों का ताज ।।
माँ शारदा की सजी चुन्दरी ।
प्रकृति के अंचल में लहरी ।।
नारी नर और युवा किसान ।
मन भर करते है गुनगान ।।
होली की तैयारी करते ।
घर – घर भर आनन्द बरतते ।।
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