ईंख Cane hindi poems poetry kavita balkvita Dr. G. Bhakta Xitiz

 ईंख

 बच्चों को लगती है भूख ।

 उनको मीठा लगता ऊँख ।।

 उससे ही है चीनी बनती ।

 वह सबकुछ को मीठा करती ।।

 गुड़ और शक्कर मत भूलो ।

 मीठा शरबत तुम भी पीलो ।।

 मिश्री कितनी मीठी लगती ।

 बच्चों को है प्यारी अँचती ।।

 इसको गन्ना कहते भाई ।

 हरेक किस्म की बनी मिठाई ।।

 हलवा हो या बुनिया खीर ।

 इसके बिना न होता मीठ ।।

 रोपो गन्ना , चूसो ईंख ।

 मेहनत करके जीना सीख ।।

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