अपना गाँव
अपना गाँव निराला है ।
चारो ओर उजाला है ।
बिजली की जगमग में देखो ,
हर मानव मतवाला है ।।
घर में नारी खुशी मनाती ,
कृषक न फुले समाते हैं ।
हरी – भरी खेतों से हरदम ,
मस्ती मौज मनाते हैं ।।
हरे – भरे हैं बाग बगीचे ,
फल – फूलों से लदे हुए ।
उनकी शोभा निरख – निरखकर
सुख के अंकुर खड़े हुए ।।
खलिहानों में फसल रखी है ।
घर में भरा अनाज रखा है ।
गोशालों में गाय दुहाती ,
गाँव बड़ा खुशहाल बना है ।।
हर पेशे के लोग बसे हैं ,
हर चिजें उपलब्ध यहाँ पर ।
सस्ता शुद्ध सुलभ है सबकुछ ,
स्वर्ग बसा है भू – के ऊपर ।।
सब शिक्षित सब लगे काम पर ,
नौकरी और परदेश कमाते ।
अर्जन कर अपनी मेहनत से ,
सुन्दर – सा घर द्वार सजाते ।।
खुल गये है स्कूल यहाँ पर
अस्पताल उद्योग खुला है ।
पानी , बिजली , सड़क गाँव में ,
जनता में उत्साह जगा है ।।
पर्व और त्योहार मनाते ,
मंदिर मस्जिद में सब जाते ।
भोज और बारात यहाँ पर
बच्चों में उत्साह जगाते ।।
गाँवों की धरती – सा सुन्दर ,
होगा क्या कोई स्वर्ग कहीं पर ?
आओ , हम मिल शीश झुकाएँ ,
अर्पित हो धरती के ऊपर ।।
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