तितली butterfly hindi poems poetry kavita balkvita Dr. G. Bhakta Xitiz

तितली

 दीन हूँ मैं , गमगीन नहीं हूँ

 फूलों का शौकीन रही हूँ ।।

 चंचल और हसीन भली हूँ ।

 नाजुक वो कमसीन सही हूँ ।

 वसती हूँ मैं बागों में ।

 टिकती हूँ मैं काँटों में ।।

 लिपटी हूँ सदा परागों में ।

 सुन्दर लगती हूँ दागों में ।।

 मुस्काती हूँ , शरमाती हूँ ।

 इतराती हूँ , इठलाती हूँ ।

 बलखाती हूँ , उड़ जाती हूँ ।

 सहलाती हूँ , फुसलाती हूँ ।

 मधु पीकर मैं मतवाली हूँ ।

 काटों में शोभाशाली हूँ ।

 मैं दो – दो पंखों वाली हूँ ।

 मैं खुब बजाती ताली हूँ ।

 उपवन की मैं रानी हूँ ।

 सबकी जानी पहचानी हूँ ।

 मैं हर फूलों की वाणी हूँ ।

 मैं रुप भरी मस्तानी हूँ ।

 भँवरों का गीत पसंद मुझे ।

 मीठा लगता मकरंद मुझे ।

 बहलाता वायु मंद मुझे ।

 नहलाता शीतल चन्द्र मुझे ।

 छूओ नहीं , उड़ा दो तुम ।

 मारो नहीं , भगा दो तुम ।

 पूछो नहीं , सुना दो तुम ।

 नाम मेरा बतला दो तुम ।

2 thoughts on “तितली, दीन हूँ मैं , गमगीन नहीं हूँ, फूलों का शौकीन रही हूँ ।”

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