व्यंजन
करते हैं सबका मन रंजन ।
विविध ठंग के बने व्यंजन ।।
स्वाद बने कितना मन भावन ।
कितने सुन्दर , कितने पावन ।।
मम्मी हर दिन हमें खिलाती ।
और रसीला सदा पिलाती ।।
खा – पीकर जाते स्कूल ।
टिफिन लेकर टंकी फुल ।।
खाते और खिलाते सबको ।
कविता गा बहलाते मनको ।।
पुनः लौटकर करते नास्ता ।
हलवा और कचौड़ी खास्ता ।।
कभी जैम या सौस पराठा ।
खाकर खेले जूडो कराटा ।।।
भात , दाल पर सब्जी भूजीया ।
पापड़ , दही , तिलौड़ी बढ़िया ।।
घी की छौक लगाकर खाते ।
चटनी रतुआ किसे न भाते ।।
कठी , फुलौड़ी खाकर मस्त ।
चक्का किया हमे मदमस्त ।।
पार्टी या बारात पर्व हो ।
जन्म दिन हो या रिसिप्सन ।।
भोज भात का हो आयोजन ।
या विद्यालय मे हो फंक्शन ।।
व्यंजन की भरमार वहाँ पर ।
पूड़ी बुनिया और मिठाई ।।
चाट सिघाड़ा इटली डोसा ।
लिट्टी – चोखा , बर्फ मलाई ।।
खाचीकर जब मस्त हुए ।
तब देखा श्रीमती जी आयी ।।
चिकने पोलाब चटकर उसने ।
सौ सौ पीस गोल गप्पे खायी ।।
आगे बढ़कर देखा मैने ।
गर्म जिलेबी छनकर आयी ।
कैसे रोक सकूँ अपने को ,
चौके मैंने कई लगाई ।।
खाना है तो खाना ही है ।
फिर हानि से बचना भी है ।।
सोच समझ कर खाना खाओ ।
खाकर कभी न जोखिम लाओ ।।