देश और देश भक्ति
महावीर बुद्ध बापू ने , अपनी – अपनी बात बतादी ।
उत्तम जीवन का पथ देकर उसपर चलना हमें सिखादी ।।
लेकिन क्या हम सीख सके , जब आज भ्रष्ट बन बोल रहे हैं ।
राम कृष्णा की धरती कहकर उस पर नंगे दौड़ रहे है ।।
उसी धरा के बाल्मीकि ने लिखी रामायण पुण्य कमाये ।
राम राज्य का वर्णन करके तुलसी जग में अमर कहाये ।।
कहते सब हैं उनकी गाथा , लेकिन शर्म नहीं है आती ।
उनकी गरिमा गाते – गाते अपने हाथों चिता सजा दी ।।
ऐसे हैं अनुयायी हिन्द के , जिनकी आँख न आँसू आते ।
सत्ता की सूरत बिगाड़कर गौरव से नहीं फूले समाते ।।
ऐसा हुआ आदर्श वतन का , वेतन बढ़ा , पतन का धंधा ।
पतितों का संरक्षक बन गयी , लोक सभा की पावनी गंगा ।।
सत्य सत्य है अमर रहेगा , लेकिन पतित कहाँ जायेगा ?
भारत के इतिहास पर काला धब्बा उसको याद करेगा ।।
जे ० पी ० अन्ना हो या गाँधी इनकी आभा नही घटेगी ।
लेकिन क्या इस बार देश में सत्ता स्वच्छ पवित्र बनेगी ?
इमानदार होना है सबको , नागरिक , नायक और विद्यायक ।
सावधान रहना है सबको , कही न घुस जाये नालायक ।।
ऐसी बने व्यवस्था जग में , ऐसा हो आयोग स्वतंत्र ।
निर्भय रहकर निर्णय करना , तभी सफल होगा जनतंत्र ।।
एक है अन्ना , शेष है गन्ना , न्याय तंत्र में सब है भागी ।
हमें देखना है उस दिन को आगे आते कितने त्यागी ।।
बाजा बजता रहा आज तक मारीच स्वर्ण मृग बन आया ।
घुसने का सुअवसर पाकर , पापी प्रजा पालक बन पाया ।।
लेकिन आस नहीं खोना है , लक्ष्य हमारा देश बचाना ।
क्रान्ति बीज न सड़ने वाला , इसको हमने है पहचाना ।।
है विश्वास विश्व में सब दिन विजय सत्य को मिली हमेशा ।
होंगे सफल आज भी हम सब , रंच मात्र भी नही अंदेशा ।।
( डा ० जी ० भक्त )
हाजीपुर , वैशाली
महावीर बुद्ध बापू ने , अपनी – अपनी बात बतादी ।
उत्तम जीवन का पथ देकर उसपर चलना हमें सिखादी ।।
लेकिन क्या हम सीख सके , जब आज भ्रष्ट बन बोल रहे हैं ।
राम कृष्णा की धरती कहकर उस पर नंगे दौड़ रहे है ।।
उसी धरा के बाल्मीकि ने लिखी रामायण पुण्य कमाये ।
राम राज्य का वर्णन करके तुलसी जग में अमर कहाये ।।
कहते सब हैं उनकी गाथा , लेकिन शर्म नहीं है आती ।
उनकी गरिमा गाते – गाते अपने हाथों चिता सजा दी ।।
ऐसे हैं अनुयायी हिन्द के , जिनकी आँख न आँसू आते ।
सत्ता की सूरत बिगाड़कर गौरव से नहीं फूले समाते ।।
ऐसा हुआ आदर्श वतन का , वेतन बढ़ा , पतन का धंधा ।
पतितों का संरक्षक बन गयी , लोक सभा की पावनी गंगा ।।
सत्य सत्य है अमर रहेगा , लेकिन पतित कहाँ जायेगा ?
भारत के इतिहास पर काला धब्बा उसको याद करेगा ।।
जे ० पी ० अन्ना हो या गाँधी इनकी आभा नही घटेगी ।
लेकिन क्या इस बार देश में सत्ता स्वच्छ पवित्र बनेगी ?
इमानदार होना है सबको , नागरिक , नायक और विद्यायक ।
सावधान रहना है सबको , कही न घुस जाये नालायक ।।
ऐसी बने व्यवस्था जग में , ऐसा हो आयोग स्वतंत्र ।
निर्भय रहकर निर्णय करना , तभी सफल होगा जनतंत्र ।।
एक है अन्ना , शेष है गन्ना , न्याय तंत्र में सब है भागी ।
हमें देखना है उस दिन को आगे आते कितने त्यागी ।।
बाजा बजता रहा आज तक मारीच स्वर्ण मृग बन आया ।
घुसने का सुअवसर पाकर , पापी प्रजा पालक बन पाया ।।
लेकिन आस नहीं खोना है , लक्ष्य हमारा देश बचाना ।
क्रान्ति बीज न सड़ने वाला , इसको हमने है पहचाना ।।
है विश्वास विश्व में सब दिन विजय सत्य को मिली हमेशा ।
होंगे सफल आज भी हम सब , रंच मात्र भी नही अंदेशा ।।
( डा ० जी ० भक्त )
हाजीपुर , वैशाली
Nice poem
Appreciate you sharing, great article post.Really looking forward to read more. Awesome.