देश और देश भक्ति Country and patriotism hindi poems poetry kavita Dr. G. Bhakta Xitiz

 देश और देश भक्ति

महावीर बुद्ध बापू ने , अपनी – अपनी बात बतादी ।

उत्तम जीवन का पथ देकर उसपर चलना हमें सिखादी ।।

लेकिन क्या हम सीख सके , जब आज भ्रष्ट बन बोल रहे हैं ।

राम कृष्णा की धरती कहकर उस पर नंगे दौड़ रहे है ।।

उसी धरा के बाल्मीकि ने लिखी रामायण पुण्य कमाये ।

राम राज्य का वर्णन करके तुलसी जग में अमर कहाये ।।

कहते सब हैं उनकी गाथा , लेकिन शर्म नहीं है आती ।

उनकी गरिमा गाते – गाते अपने हाथों चिता सजा दी ।।

ऐसे हैं अनुयायी हिन्द के , जिनकी आँख न आँसू आते ।

सत्ता की सूरत बिगाड़कर गौरव से नहीं फूले समाते ।।

ऐसा हुआ आदर्श वतन का , वेतन बढ़ा , पतन का धंधा ।

पतितों का संरक्षक बन गयी , लोक सभा की पावनी गंगा ।।

सत्य सत्य है अमर रहेगा , लेकिन पतित कहाँ जायेगा ?

भारत के इतिहास पर काला धब्बा उसको याद करेगा ।।

जे ० पी ० अन्ना हो या गाँधी इनकी आभा नही घटेगी ।

लेकिन क्या इस बार देश में सत्ता स्वच्छ पवित्र बनेगी ?

इमानदार होना है सबको , नागरिक , नायक और विद्यायक ।

सावधान रहना है सबको , कही न घुस जाये नालायक ।।

ऐसी बने व्यवस्था जग में , ऐसा हो आयोग स्वतंत्र ।

निर्भय रहकर निर्णय करना , तभी सफल होगा जनतंत्र ।।

एक है अन्ना , शेष है गन्ना , न्याय तंत्र में सब है भागी ।

हमें देखना है उस दिन को आगे आते कितने त्यागी ।।

बाजा बजता रहा आज तक मारीच स्वर्ण मृग बन आया ।

घुसने का सुअवसर पाकर , पापी प्रजा पालक बन पाया ।।

लेकिन आस नहीं खोना है , लक्ष्य हमारा देश बचाना ।

क्रान्ति बीज न सड़ने वाला , इसको हमने है पहचाना ।।

है विश्वास विश्व में सब दिन विजय सत्य को मिली हमेशा ।

होंगे सफल आज भी हम सब , रंच मात्र भी नही अंदेशा ।।

( डा ० जी ० भक्त )

हाजीपुर , वैशाली

 महावीर बुद्ध बापू ने , अपनी – अपनी बात बतादी ।

 उत्तम जीवन का पथ देकर उसपर चलना हमें सिखादी ।।

 लेकिन क्या हम सीख सके , जब आज भ्रष्ट बन बोल रहे हैं ।

 राम कृष्णा की धरती कहकर उस पर नंगे दौड़ रहे है ।।

 उसी धरा के बाल्मीकि ने लिखी रामायण पुण्य कमाये ।

 राम राज्य का वर्णन करके तुलसी जग में अमर कहाये ।।

 कहते सब हैं उनकी गाथा , लेकिन शर्म नहीं है आती ।

 उनकी गरिमा गाते – गाते अपने हाथों चिता सजा दी ।।

 ऐसे हैं अनुयायी हिन्द के , जिनकी आँख न आँसू आते ।

 सत्ता की सूरत बिगाड़कर गौरव से नहीं फूले समाते ।।

 ऐसा हुआ आदर्श वतन का , वेतन बढ़ा , पतन का धंधा ।

 पतितों का संरक्षक बन गयी , लोक सभा की पावनी गंगा ।।

 सत्य सत्य है अमर रहेगा , लेकिन पतित कहाँ जायेगा ?

 भारत के इतिहास पर काला धब्बा उसको याद करेगा ।।

 जे ० पी ० अन्ना हो या गाँधी इनकी आभा नही घटेगी ।

 लेकिन क्या इस बार देश में सत्ता स्वच्छ पवित्र बनेगी ?

 इमानदार होना है सबको , नागरिक , नायक और विद्यायक ।

 सावधान रहना है सबको , कही न घुस जाये नालायक ।।

 ऐसी बने व्यवस्था जग में , ऐसा हो आयोग स्वतंत्र ।

 निर्भय रहकर निर्णय करना , तभी सफल होगा जनतंत्र ।।

 एक है अन्ना , शेष है गन्ना , न्याय तंत्र में सब है भागी ।

 हमें देखना है उस दिन को आगे आते कितने त्यागी ।।

 बाजा बजता रहा आज तक मारीच स्वर्ण मृग बन आया ।

 घुसने का सुअवसर पाकर , पापी प्रजा पालक बन पाया ।।

 लेकिन आस नहीं खोना है , लक्ष्य हमारा देश बचाना ।

 क्रान्ति बीज न सड़ने वाला , इसको हमने है पहचाना ।।

 है विश्वास विश्व में सब दिन विजय सत्य को मिली हमेशा ।

 होंगे सफल आज भी हम सब , रंच मात्र भी नही अंदेशा ।।

 ( डा ० जी ० भक्त )

 हाजीपुर , वैशाली

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