गुगल्स को नववर्ष की सुखद सम्वेदना प्रेषित Happy New Year sent to google hindi poems poetry kavita balkavita Dr. G. Bhakta

 गुगल्स को नववर्ष की सुखद सम्वेदना प्रेषित

 नव वर्ष को अर्पित समर्पित विश्व को संगीत ।

 सम्वेदना की पीड देती । चेतना के गीत ।।

 उस वेदना की चिर स्मृति में खो गया अतीत ।

 पाया नित्य जो नवनीत खाकर भी रहा भयभीत ।।

 प्रवृत्तियों का दास मानव दुष्ट कलह प्रवीण ।

 दीनता की आग में तपता मनुज बलहीन ।।

 परतंत्रता की घन – घटा की नाद से संतप्त ।

 कर न पाया दीनता को दूर वह मदमस्त ।।

 ज्ञान की संस्कृति जब विज्ञान का प्रकाश पाया ।

 कला और साहित्य का वरदान पा जग को जगाया ।।

 कल्पना के तार को जब जाल सा जग में बिछाया ।

 युक्ति के प्रयास से उत्साह सह उल्लास पाया ।।

 बाद के प्रतिवाद में संसार खोया जा रहा था ।

 संचार साधन से नया संवाद मानव चाहता था ।।

 दूरी घटी , मानव जुड़ा करतल में दुनियाँ आ गयी जब ।

 दृष्टि में दुनियाँ समायी भव्यता सब में सहज अब ।।

 कल्पना सदियों की साबित हो चली है ध्यान देना ।

 समय को पहचान कर अवसर को नव आयाम देना ।।

 भौतिक जगत को प्राण का संवेग रोवट दे रहा है ।

 दृष्टि की सीमा में सारा जग संभल कर चल रहा है ।।

 यह वहीं है गेम , करना प्रेम सबसे बन सहारा ।

 देखना है उस जगत को धर्म तेरा और मेरा ।।

 देख उस उत्कर्ष को मत त्याग देना कर्म अपना ।

 उपभोग और सुखभोग में युग धर्म को खोकर न रोना ।।

 नव वर्ष का संदेश पाकर देखकर उत्थान करना ।

 उस जमी पर प्रेम का पौधा उगाना और सीचना ।।

 नीति और रणनीति दुर्बल कर रही संस्कृति हमारी ।

 स्वस्थता सुचिता मानवता पर खड़ी दुर्दिन है भारी ।।

 संचार मीडिया का सुखद सहयोग पाकर हम खुशी है । “

गूगल ” के तत्त्वावधान में सम्भावना की कली खिली है ।।

 प्राप्त जो सम्बल जगतको लक्ष्य में रखना हमें है ।

 ज्ञान और समाधान की पहचान भी बनना हमें है ।।

 दीनता पर तू न सोचों हीनता मन में न लाओ ।

 एकता के भाव से जग को हृदय में ही बसाओ ।।

 शुभकामना देता ” गूगल ” को आजका स्वर्णिम सवेरा ।

 हो भला वैश्विक धरा पर सुयश का विस्तार तेरा ।।

 ( डा ० जी ० भक्त )

 वैशाली की धरती से भारत

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