Landscape of falling dignity गिरती गरिमा का परिदृश्य Hindi poems poetry hindi kavita Dr.  G. Bhakta

 गिरती गरिमा का परिदृश्य

 1

 हम भरत के वंश हरि के दंत गनिते ।

 दिव्य वेदों की ऋचायें याद करते ।।

 आज गरिमा जो हमारी गिर रही है ।

 और बढ़ता दैन्य दुनियाँ सो रही है ।

 2

 कौन दे अब मंत्र जीवन जड़ बना है ।

 ज्ञान की गाथा व्यथा का घर बना है ।

 लोग कहते सत्य का युग सो रहा है ।

 दुर्गुणों से लाभ जग में हो रहा है ।

 3

 ये अभागे , ज्ञान की पहचान खोदी ।

 गंग की धारा में कचड़े डालकर तू ।।

 स्वच्छता का स्पपन सुंदर देखते हो ।

 कालिखों से देव मंदिर पोतते हो ।

 4

 आज भी इतिहास गाकर कह रहा है ।

 देश बहरा बन , कभी क्या सुन रहा है ?

 शरवतों में क्षार नित दिन धोलकर तू ,

 पियूष के बदले कलुष को चुन रहा है ।।

 5

 कहो इन्द्रप्रस्थ तू अपनी कथा सुनाओ ।

 देवव्रत की शरशया की व्यथा बनाओ ।

 कहो विभीषण भरिच की माया क्यों छायी ?

 माँ – सीता पर त्रिजटा कैसे स्नेह जतायी ?

 6

 ज्ञानी रावण , शिवभक्त , लंकेश धुरंधर ।

 अति प्रतापी , मायावी , राक्षस दशकंधर ।।

 छल प्रपंच वश समझी नहीं दानकी माया ।।

 तब तो रावण सीता हरण सफल कर पाया ।

 7

 भाई – भाई का घातक , फिर भ्रातृत्व कहाँ है ?

 माता विवश पड़ी जग में मातृत्व कहाँ है ?

 मित्र – मित्र को ठगे प्रेम का कैसा पाला

 पड़ा प्यार में खलल कहो कैसा कर डाला ?

 8

 सतयुग में कौशिक का क्रोध कराल गजब का ।

 पुत्र – शोक , मार्या , फिर व्रत का ख्याल अजब का ।।

 अंग वस्त्र का दान , दलन था अहंकार का ।।

 वृथा स्वर्ग का दम्भ , सुयशसब संस्कार का ।।

 9

 द्वापर का दावाबल पाण्डव झेल अमर है ।

 दुर्जय शस्त्रों के प्रयोग की भूमि समर है ।।

 जन पर जनतंत्र की महिमा क्रूर कहर है ।

 कैसे नेता कहते इसे विकास लहर है ।

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