भ्रातृ द्वितीया ( भाई दूज ) या यम द्वितीया अन्न कूट या यम घण्ट
कार्तिक का यह सप्ताहांत ।
लिए साथ उत्सव का रंग ।।
कितना सार्थक और महत्त्व
पूर्ण बना घर – घर यह दंग ।।
धनतेरस से छठ तक जायें ।
लगातार उत्सव ही पायें ।।
ऐसा है संयोग वर्ष मेरा ।
व्रत – त्योहार हर्ष है घर – घर ।।
नहीं कोई दिन वंचित इस की
कैसी है कल्पना धर्म की ।
नित दिन धर्म कर्म उपवास ,
होम यज्ञ तप व्रत साधन की ।।
सभी मिटाते कष्ट कलंक ।
हरते जग के शोक अनंत ।।
भाई दूज है ऐसा दिन ।
जिससे जीवन रहे अभिन्न ।।
भाई बहन का साश्वत प्यार ।
नहीं वियोग होता वरदास्त ।।
बचपन बीता जो संग – संग
नहीं भुला पाती वर्षान्त ।।
माता – पिता हुए निष्प्राण ,
भाई मात्र की ममता ध्यान ।।
किंचित नहीं कठोर समझना
विगत वर्ष में याद तो करना ।।
लिए सजोग मन में मिक्षा ,
करती रही बहन प्रतीक्षा ।।
आया दिन उपहार हाथ में ,
भाई बहन आज एक साथ में ।।
लेकर मधुर नारियल की फली
बहन के साथ केराव की बजरी ।।
भावुक मन दिल में उद्गार
भाई बहन का अविरल प्यार ।।
चकवा भैया चललन अहेलिया
बहना के सिर सिंदुर हो ना ।।
युग – युग जिअ मोरे भईया
बहना से लेहु अशीष होना ।।
माथे तिलक मुख विरवा
भउजी अमर एहबातें होन ।।
( उतनी भावुकता भरा क्षण जीवन और मानव हृदय की करुण पुकार है । शास्वत प्रेम का वरदान हमारी आत्मा की पहचान है । उसी द्वितीया तिथि को यमराज अपनी बहन से भेंट करने गया था और वह भाई के शिर पर चंदन लगायी थी । यह प्रथा “ भाई दूज का त्योहार ” आज यादगार बना है । जब बहन द्वारा माथे पर लगाया गया तिलक के साथ बहन कल्पना करती है कि जबतक भैया के सिर पर यह तिलक रहेगा वह अमर रहेगा भाभी के सिन्दुर की शान बना रहेगा । )
बहुत ही सुन्दर, मार्मिक और ऐतिहासिक क्षण ।