जागृति का उद्घोष
जागो भारत के लाल तन्द्रा त्यागो ।
ये भोग व्यसन अपराध मनुज से भागो ।।
न्यायार्थ भूमि पर जमों , धैर्य अपनाओ ।
सत्यार्थ स्नेह सद्भाव शील सरसाओ ।।
जागृति के पथ पर बढ़ो विवसता छोड़ो ।
उद्याम जगत के सभी अनैतिक तोड़ो ।।
बढ़ चलो लक्ष्य की ओर कदम मत पीछे रखना ।
है सदा श्रेय सत्कार्थ न प्रण से पीछे हटना ।।
चल रही श्वांस उच्छवास विनय श्रम सृजन का है ।
नही अकेले हो तुम निर्जन निर्धन क्या है ।।
कोटि – कोटि जन तेरे जैसे ताक रहे हैं ।
अपने नेता की बोली पहचना हैं ।
भूलो मत , यह प्रजातंत्र है धोखा ।
चलो बसाये दुनियाँ अलग अनोखा ।
जहाँ दुखी और भूखी जनता सुख से सोये ।
नहीं उपेक्षा और निरादर पाकर रोये ।।
भूलो तुम अनुदान आरक्षण पाकर जीना ।
स्वअवलंबन हेतु रक्त को करो पसीना ।।
ये नेता वलक्षीण कर्म से हीन विरोधी ।।
सदा स्वार्थ में लीन सिर्फ सत्ता के लोभी ।।