इस विकसित संसार में , भारत वर्ष महान ।
सबसे पहले इस धरती पर उपजा सारा ज्ञान ।
उपजा सारा ज्ञान , सभ्यता यही फली थी ।
संस्कृति की पहचान जगत में यही बनी थी ।
ज्ञान और विज्ञान धर्म की भूमि यही है ।
चार वेद , षड़ – शास्त्र की रचना यहीं हुयी है ।
कहते सारे लोग विश्व को देकर अपना ज्ञान ।
है पाया सम्मान लोक में , भारत वर्ष महान ।
इस धरती पर जन्में हम सब ज्ञानवान कहलाये ।
धर्म – ध्वजा को लेकर हमने दुनियाँ में लहराये ।
दुनियाँ में लहराये हम सब विश्व गुरु कहलाये ।
नालंदा और तक्षशिला से ज्ञान रश्मि फैलायें ।
कला , धर्म , साहित्य , न्याय , दर्शन का दीप जलाये ।
कृषि , चिकित्सा , गणित आदि विषयों का लाभ उठाये ।
विश्व का कोना – कोना कहता ज्ञान जहाँ से पाये ।
भारत सिवा नही दुनियाँ में , जो ज्ञान – स्त्रोत कहलाये ।।
इतने सारे वैभव पाकर दुनियाँ को ललचाये ।
भौतिकता की होड़ में हमने गौरव सभी गँवाये ।।
गौरव सभी गँवाये देश कमजोर हो गया ।
सदाचार का ह्रास विकास भी रोग बन गया ।
मूल्य और संस्कार की धर से हुयी विदायी ।
तब तो सोने की चिड़िया पर बदली छायी ।।
सत्य अहिंसा पर जो चलता खाता डंडा ।
राजनीति का चक्र लोभ लालच का फंडा ।।
बढ़ी आबादी , बेराजगारी , बनी तबाही ।
इतना दुराचार कि मिलती नही गवाही ।।
मिलती नही गवाही , संसद सबसे उपर ।
राजनीति में भाई – भाई है सभी परस्पर ।।
लूट की ऐसी छूट , गरीबी कहने भर की ।
ले आपस की फूट समस्या इनती जकड़ी ।।
इतने फैले रोग निदान में बड़ी तबाही ।
रोगी हो दो – चार तो अच्छा , बढ़ी आबादी ।।
देह प्राण की एकता का मर्म जानो ,
इन्द्रियों के भोग को जो कर्म कहते ।
जीव की सत्ता नही , नश्वर तू मानो ,
प्राण के संचार भर को जान कहते ।।
सुख – भोग – सम्मान जन की शान जानो ।
रुप यौवन धन तुम्हारी आन है ।
प्यार है , बलिदान है तो मान लो ,
त्याग को मिलता सही सम्मान है ।।
दीनता में पात्रता पहचान समझो ,
ज्ञान की गरिमा को एक स्थान है ।
श्रम सेवा सम्मान सब कुछ दान करना ।
कर्मशील जीवन ही सदा महान है ।।
सोच लो दुनियाँ है जड़ तुम चेतना हो ।
मालनो तुम ही जगत की वेदना हो ।।
वेदना को चेतना से जोड़ दो ।
सर्जना का भाव जन में धोल दो ।।
पहन लो टोपी दया का दान हेतु ।
देह को दुनियाँ का आश्रम मान भी लो ।।
फिर भी तेरे कर्म पर विश्वास करना ।
कौन चाहे इस जगत का भार हरना ।।
तुम बढ़ो , यदि बढ़ सको , है जगह खाली ।
कर सको , तो उठ खड़ा हो , आयी लाली ।।
ताकती सहमी ये दुनियाँ विवस बनकर ,
तुम रगों में उन सबों के प्राण भरदो ।
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