दौड़ लगाती दफ्तर जाती , लौट - लौट जाकर दरबार ।। Used to run to office, to go back to court. Dr. G. Bhakta Hindi poems

 

दौड़ लगाती दफ्तर जाती , लौट – लौट जाकर दरबार ।।

काम नही करते जो बाबू उनसे चलती है सरकार ।

काम कराते वहाँ एजेन्ट है नेता जी को क्या दरकार ।।

ऐसा है गणतंत्र हमारा यही सुनहरा ग्राम स्वराज्य ।

मनरेगा अंत्योदय चलते इतना सुन्दर , कैसे त्याज्य ?

आओ गठबन्धन हम कर लें , बाँट – बाँट कर करलें राज ।

जनमंगल से जनमत बनता इसमें किसको है एतराज ।।

दूरदर्शी नेता समाज के संविधान को रखकर ताख ।

देश चलाते अपनी मर्जी , जनता खोदी अपनी आँख ।।

देखो रैली चल निकली है , है विकास का एक ही राज ।

राजनीति का गुर बतलाते , रोटी भर को हैं मुहताज ।।

जिनकी चलती बात ब्लॉक में , जिनके सर नेता का हाथ ।

मेरा नेता वही एक है , चलना मुझकों उनके साथ ।।

सही अर्थ है लोकतंत्र का , यही एकता यही स्वराज ।

राजनीति का मूल मंत्र यह जिसकी लाठी उसका राज ।।

नेता का विश्वास इसी में जन को छोड़ों , मत को लाओ ।

जनता चलती चाल अजब की , छोड़ चलो परिवर्तन पाओ ।

सबका मुखड़ा एक तरह का , बातों पर तुम मत ललचाओ ।

लोकतंत्र का सही मुखौटा गढ़कर तू जनतंत्र बचाओं ।।

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