दुर्गा पूजा
देवि दुर्गा दिव्यता का पूंज है ।
नारियों में वीरता से पूर्ण हैं ।
भारती भारत भवन में गुंज है ।
संस्कृति के भाव से अदुण्ण है ।।
कर्म वेदी पर चढ़ाने शीश को
तू पधारी काटने को बेड़िया ।
जो दनुज की दानवी सत्ता रही ,
दलन का एहसास करती बेटियाँ ।।
अवतरित होकर दस दिशाएँ
घेर डाली आयुधों के जाल से ।
नौ कुमारी शस्त्रधारी चलपड़ी
पर्वतों के शिखर दुर्गम भाल से ।।
कूदकर रणक्षेत्र में
हूँकार भर कर ।
निश्चरों के निकर को
तू चूड़ कर दी ।
तू रही माता बहन वनिता
बघूटी वाम नारी ।
तोड़ कर माया समर में
पाँव रखकर , घोस्सारी
वेदना के पीड़ को ललकार कर तू
शाति की सरिता से धरती सींच डाली ।।
शैल पुत्री , ब्रह्मचारी चन्द्रघंटा
नाम तेरा ।
कामिनी कुष्माण्ड पाणि
ज्योतिमति स्कंद माता ।।
व्यापिनी कात्यायिनी
बन कालरात्रि तू पधारी ।
बेध कर धाती दलन कर
शत्रु का सब दल संहारी ।।
तेरी महिमा से विजय की
गूंज हम करते पुजारी ।
आज आर्यावर्त की भूमि
धूमिल हो गयी हमारी ।।
एक आशा है तुम्हारी
खोल दो वेड़ी करारी ।
महागौरी सिद्धिदातृ
ओ महामाया अधारी ।।
चरण रज को पा तुम्हारे
तृप्त हो यह विश्व सारा ।
जो मॅवर में डाल रखा भोग के ,
तू दो सहारा ।।
ज्ञान की गरिमा बढ़ाओं
दूर हो आतंक शोषण ।
दीनता को क्षीण कर दो ,
और मिट जाये कुपोषण ।।
शान्ति की शीतल हवाएँ
मातु ! तेरे पाँव चूमें ।
और शिक्षा से सुशोभित
ज्ञान का अभियान गुंजे ।।
( डा ० जी ० भक्त )