दोषी कौन
इस विशाल भू – पटल पर
साम्राज्य है मानव का , पराक्रम है दानव का ।
भीषण प्रचण्ड शोषण , और फैलता प्रदूषण ।
धरती आकाश और सागर , तेरा पेट न भर सकें मगर ।
ये जंगल , ये खेत , ये खानें , ये महल , मकान , कारखाने
सब कुछ है तेरे अपने , पर क्यों तुम्हें सुख हो गये सपने ?
विज्ञान , उद्योग , तकनीक , साधन जुटाते जीवन जनित ।
बोते बीज अगणित – विनाश इनमें ही लक्षित ।
जीवाणु , विषाणु और कीटाणु , तूने खोजा अणु और परमाणु ।
पर क्यों भय से ग्रसित हो चले ओ मनु ?
तूने लोहे की दुनियाँ रची , प्लास्टिक के पोशाक दिये ।
रेल वायुयान जैसे जानवर में पैर के बदले पहिए ।
ये एड्स और कैंसर के रोग , जीवन – मरण का कैसा संयोग ।
चिकित्सा और नर्सिंग होम , आह से कराह उठा व्योम ।।
ये मानव तुम फैलकर सिमट रहे हो ।
तुम चढ़कर भी फिसल रहे हो ।
खोजो , इसमें कहाँ है कमी ।
दोष कर्त्ता में है – कर्म मे नही ।।