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अमृत वचन
प्रथम सफाई मन की कीजै । दूसर ध्यान बदन पर दीजै ।।
तीसर वस्त्र , चौथा आचरण । पंचमशीलमधुर सम्भाषण ।
छठा विनय पूर्ण व्यवहार । सप्तम कीजै अल्प आहार ।।
अष्टम मन संतोष बढ़ाई । नवम् कुसंगत दूर भगाई ।।
दसवाँ सतत् प्रसन्नचित रहिए । निर्भय सुखद निंद से सोइए ।
जनहित का कीजै नित ध्यान । स्वस्थ जीवन की यह पहचान ।।
सच्ची सीख
बच्चों सदा ध्यान से पढ़ना ।। व्यर्थ किसी से नहीं बिगड़ना ।।
बड़े सवेरे नित दिन जगना । श्रेष्ठ जनों से नहीं झगड़ना ।।
खेल – कूद व्यायाम की कीमत । सदा समय का मूल्य समझना ।।
ठंढ़े जन से खूब नहाना । किसी जीव को नहीं सताना ।।
कठिन समय जब आवे तुझपर । तन – मन से तुन रहना तत्पर ।।
नियमित जीवन और सफाई । सब की है बस एक दवाई ।।
दिक्कत से तुम मत घबड़ाओं । खूब सोचकर कदम बढ़ाओं ।।
आज्ञाकारी बनकर जीना । गुरु कृपा का अमृत पीना ।।
सादा जीवन उच्च विचार । सद्गुण का करना विस्तार ।।
यह जीवन की सच्ची शिक्षा । किसी चीज की नहीं प्रतीक्षा ।।
सीख
पहली शिक्षा माँ की गोद । दूसरी शिक्षा अक्षर बोध ।
तीसरी शिक्षा आज्ञा पालन । चौथी है नैतिक अनुशासन ।
पंचम सीख जीवन की कला । छठा करना सबका भला ।
सप्तम सीख देश भक्ति की । अष्टम सीख न्याय नीति की ।
नौमी सेवा और सुरक्षा । दशमी है जीवन की रक्षा ।
यही ज्ञान की सही सीख है । सुखी राष्ट्र की यही नींव है ।