जब गुज़ उठी किलकारी
जब गुज़ उठी किलकारी,
घर के आंगन में
सब हसे लेकिन मैं रो रहा था,
क्योंकि मैं उस समय मा से लिपटकर
उसकी हुई दर्द महसूस कर रहा था।
मुझे देख उसने अपनी पास सुलाकर
अपनी मुख पर एक मुस्कान लाई,
उसके चेहरे के देख मेरे अंदर से भी
एक मुस्कराहट फुटकर बाहर आई।
अपनी कई दर्दो को वह हसकर
यूं ही छुपा लेती है,
लेकिन अपने बेटे के छोटी चोट की
दर्द उसे बर्दास्त नहीं हो पाती है।
मेरी शरारतों पर वह मुझे खूब पिटाई लगाती है,
हमें रोता देख हमसे कही ज्यादा वह रो जाती है।
मां तो मां ही होती है…..2
Amarjeet Kumar
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