“बचपन अब कहाँ “
“बचपन अब कहाँ “
तलाश ता रहता हूँ इंटरनेट पर
बचपन को हर रात
इतनी जल्दी क्यों बड़े हो गए? पर
बचपन में तो जवानी थी ख्वाब
बचपन अब जमाना है
गुज़र गया जो तिल-तिल में
मुझे पता ना चला
कितना खुश था मैं
आज वो पल-पल मुझको भाता है
जो हैं मेरे मन में पला
सूखे मिट्टी के खुशबू में
उछलते ,भींगते वारिसों में
मेरा बचपन है बिता
मैदानों की धुलो में
आसमान में उड़ते पतंगों में
मेरा बचपन है बिता
कांच के गोलीओ में
टायर की चक्कों में ,
उछलते गुल्लीओ औऱ डंडों में
आम तोड़ ने की उन ढेलों में,
मेरा बचपन है बिता
लरकते-झगड़ते खेलों में
हँसते गाते फ़िर उन्हीं पलों में
ऐसा बचपन अब कहाँ
अपने रूम ,मोबाइल-कम्प्यूटर में सब है
बचपन तो अब डिजि-गेमों में हे समेटा
हमारे जमाने जैसा बचपन अब कहाँ
Rajdeep sarkar
City:- Agartala (Tripura)
JNV Dhalai Tripura
(2012-2019)
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अहिंदी भाषी क्षेत्र से उभरता नवयुवक हिंदी भाषी कवि…!
इस शुभ कार्य में ईश्वर हमेशा आपके साथ रहें।
– क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
Too good brother 👌🏻👌🏻👌🏻👌🏻
Heart ❤touching bro… 👌👌👌👌👌
Heart touching bro. .❤❤❤❤