गरीब और मजदूर
1:-सियासी असूल में,
जो आग लगती हैं।
पर उसमें अक्सर,
गरीब ही जलाते हैं।
जहां से कभी,
हम चले थे।
आज भी वही,
खड़े हो गये ।
इंडिया जिन्हें ,
पसन्द नहीं था।
वो हवाई जहाज,
से घर आ रहे है।
भारत निर्माण में,
व्यस्त थे जो।
वो सड़को पर,
धक्के खा रहे हैं।
किसानों के लिए,
पूरा देश एक,
बाजार हैं… और,
सरकार के लिए,
गरीब और मजदूर,
बस वोट पाने,
का औजार हैं।
2:-बहुत दिनों से,
आपने देखा नही है।
ये आँखो के,
लिए अच्छा नही हैं।
भाग्य के दरवाजे,
पर सर पीटने,
से बेहतर हैं।
कर्मों का तूफान,
पैदा करो, साहब।
दरवाजे आपने
आप खुल जायेंगें।
3:-पढ़ लिख कर,
पुलिस या डॉक्टर,
तो नही बन पाया ,
यदि शराबी ही बन,
जाता तो आज देश,
के काम तो आता ।