नन्ही थी मैं तब पापा की परी थी
नन्ही थी मैं तब पापा की परी थी ..
ज़रा बड़ी क्या हुई ….
रिश्ता पक्का किया जा रहा था ,
रिश्ता कैसा था जो मेरे मर्जी के खिलाफ था ,
न हो मेरा शादी ऐसा कुछ अर्जी मैंने भी लगाया था ,
वजूद क्या है मेरा ….
ये सवाल मुझे सताया जा रहा था !
क्या कहूँ जनाब किस कदर
पापा क़ि परी हूँ से पति का नाम दिया जा रहा था ।
बैंटियां तो पराया धन हैं ..
बड़े नाजुक से संभाला जाता है ..
कुछ यूँही बातें मुझे सताया करती हैं ,
हर बार वजुदें क्या है तुम्हारा
यहीं सवाल किये जाती हैं ।
जो पापा आज तक बोलते थे
बेटियाँ तो घर की लक्ष्मी होती है ..
फिर आज उनका जवाब कैसे बदल गया
बेटियाँ हमारे घर की मेहमान हैं …
अज़ीब दस्तूर है न इस दुनिया का भी ,
कभी पापा की परी हुआ करती थी
अब पति का अर्धाग्नि
मगर मर्जी कभी न अपना चला ,
अर्थी भी उठती है तो तेरे नाम का चूनरी मिलती है ।
वरना उजाला कफन मेरे नाम कर दि जाती है ,
सबकुछ तो तेरा है ..
फिर नारी के किस अस्तित्व की बात की जाती है ।
Archana kumari
Jnv Siwan (2012-19)
City:- Siwan Bihar
Email:- [email protected]
Follow
Instagram:- Archana kumari
YourQuote:- Archana kumari
Messages
दिल में उम्मीद लिए बढ़ते हैं आगे,
हौशले भी हैं बुलंद
है अगर दम तो आओ रोक लो मेरा कदम।
Thanks again for the article post.Really thank you! Fantastic.