कोरोना का क्रन्दन
बढ़ी विपदा जब धरती पर हुआ देवगण का अवतार ।
बढ़ा पाप तो आया दुर्दिन , फैला जग में अत्याचार ।।
यही परम्परा बन कर रह गयी , नहीं हुआ दुख कानिस्तार ।
आया कलियुग विकट विश्व में , सोच रहा सारा संसार ।।
कौन कहे किसको है दोषी ,
सब की भूख तीव्र बन जाती ।
सभी चाहते जीना जग में ,
विगत धैर्य पर , तृष्णा आती ।।
जहाँ प्रदूषण और मिलावट ,
शोषण का साम्राज्य खड़ा है ।
किंचित कोई देश भक्त है ,
प्रेम – भाव भी भाग पड़ा है ।।
जन को लोभ मोह से मतलब , नहीं सत्य से कोई नाता ।
येन केन एषणा पलतो , कौन किसी पर दया दिखाता ।।
बेकारी भूखमरी देश में , अस्सी का अनुपात लिये है ।
जो प्रवास में पाले जीवन , उसके उपर सुधि किसे है ।।
उपभोक्ता को उदार वाद से
जो जोड , जनतंत्र कहाँ है ?
राजकोष का लूट जहाँ पर
जन – गण – मन को चैन कहा है ।।
यहाँ चाहिये समरसता का
वातावरण और सद् – भाव ।
जहाँ स्वावलंबन के बदले ,
मानवता का सदा अभाव ।।
तालाबन्दी , दूर निवास , अनुदानित भोजन और प्रवास ।
बनी औषधि , वतन कौन यह , उस पर करें सदा विश्वास ।।
जो दुनिया का बोझ उठाया , अर्थी अर्थ नहीं दे पाया ।
डब्ल्यू 0 एच 0 ओ 0 बोल जल्द तू किस बल पर सम्मान कमाया ।।
गुम सुम चुप बैठे क्यों रहते
ओ विकास के अधिष्ठातृगण ।
आज पिछड़ क्यो रहे प्रभुत्त्ववर ,
अपने ज्ञान और क्षमता पर ।।
बोझ नहीं प्रसून बनो तुम प्रभूत धनी न , बनो संजीवन ।
पोषण धन वैभव का नहीं , दर्द – चोट पर हो सवेदन ।।
निश्छल भाव से मिलो जगत से . सुनो सभी का नित दुःख दर्द ।
भानवता पर युग धर्म का कोमल ना सुखद स्पर्श ।।
यही सीख देने आया है .
आज कोरोना जिस पर जंग ।
नहीं चाहिए राजनीति का ,
नव पूंजीगत भाव अनंत ।।
लाना होगा स्वावलंबन , नहाना होगा जनाकांक्षा क जल में ।
झाड लगाना होगा अनैतिक धन म जो रोग देता है तनमन में ।।
कोरोना का संदेश जगत को , भारत ने जो दिया है नितदिन ।
अपनाएँ उसको भी दिल से जो देता है ” माई क्षितिज डौट इन ” ।।
सादर
डा ० जी ० भवत
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