पवन पानी पनघट और प्यास
पवन पानी पनघट और प्यास ,
इसी पर निर्भर है जीवन की आसा
काल के वश चलता है जीवन ,
इसके लिए करना पड़ता है प्रयास । ।
चीटियाँ और हाथी , ये सभी हमारे साथी ।
प्रयासों के बलपर मान य है महारथी । ।
सोच , निर्णय और प्रयलों का पथिक ,
ही पहुंच पाता है अगम दुर्गम मंजिला ।
पथिक भूख से व्यथित ,
पथ घूल भरा , किंच , कंकरों से कटकित ।
जर्जर खंडहरों में पूर्व चचिर्त ,
विकास की गाथा में झांक रहा दुर्दिन । ।
पवन पकड़ा हाथ , ले गया पनघट के पास ।
पथिक ने ली गहरी साँस , त्याग वेदना का उच्छवास ।
मियाया आतप का ताप , कर तृप्त अपनी प्यास ,
उठा लेकर बल का एहसास पाया पनघट के पास । ।
पनघट बोला ठहरो मत , बढ़ते जाओ ।
बुझ गयी प्यास , पकड़ो पथ , को पाओ । ।
देखो लक्ष्य तुम्हारा आगे झाँक रहा है ।
पवन वगे से तुमको आगे हाँक रहा है ।
प्यास बुझाना ही हो लक्ष्य अगर घरती पर
उदधि अम्बर पर्वत और चराचर ,
जीव जगत के , इतने जो तुम देख रहे हो ,
पानी की बूंदो से , रज – कण से खेल रहे हो ,
मन धबराओं , जीवन में मिलते रहते हैं ।
साथी , सूरज – चाँद मेघ गर्जन करते हैं । ।
डॉ0 जी भक्त