प्रेम है क्या

एक नजरिया,एक एहसास।
एक आनन्द,एक विश्वास।
जो ईश्वर है, जो शक्ति है।
जो पवित्र है, जो सौन्दर्य है।
जो जिंदगी है, और जो सत्य है।
प्रेम एक सोपान है, 
जिसके सहारे जिंदगी है।
जिस के नीचे में धरती माँ, हमारा
ऊपर से लेता है, गंगन का सहारा।
तब होता है, प्रेम का एहसास।
सुंदर होता है, गुलाब, पर
छूना नही, कॉटे हजार होते है।
जैसे इतजार करते नहीं,
इतजार करा देता है।
बैरी होते नहीं, किसी के
बैरी बना देता है।

One thought on “प्रेम है क्या, कविता; एक नजरिया,एक एहसास।”

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