ये दोस्ती
क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
मीठी-मीठी बातो से,
हंसी-मुलाकातों से,
जगी-जगी ये दोस्ती,
हाँ, ये दोस्ती।
बातो का मेला है,
ये भी क्या दूरी है?
आज मेरा ,कल तेरा है।
हो कोइ टीचर साथ में,
दूरी है, बकवास में,
यही जागी-जागी दोस्ती,
कही खो जाती है।
बस ये दोस्ती याद,
बन कर रह जाती है।