मेरे सपनों का भारत
क्षितिज उपाध्याय “किशोर”
मेरे सपनों का भारत में,
देश में राम-राज्य होगा।
भेद-भाव न होगा मन में,
भाव एकता का होगा।
एक सूत्र में बंध कर,
देश निराला कर देंगे।
आँच न आने देंगे,
प्राण कर देगें।
सबमें दया-भाव होगा,
गले मिलेगें हिन्दू-मुस्लिमल,
होली- ईद साथ मनाएंगे।
मुस्लिम भी आपने हाथ में रखी बधवाएगे।
भेद- भाव न होगा मन में,
भाव एकता का होगा,
पर अभी भी इस देश में,
निधर्न का कोई मान नहीं?
निधर्न का कोई समान नहीं,
निर्धन क्या ? कोई इन्सान नही।
कोई पहने हीरा-मोती,
कोई पहने फटी लघोटी।
कोई खाए दूध-मलाई,
कोई सुखी रोटी।
क्या हमारे देश में कोई इन्साफ नहीं?
सम्मानित हो धनवान,
चाहे कुकर्मि हो सारे।
निधर्न अगर आ जाएँ,
बैठे जमीन पर बेचारे।
क्या हमारे देश में कोई समान नहीं?
ऐसा कभी न होगा देश में,
भाव एकता का होगा।
जिस भूमि पर पूजा जाता, नरी को
उसी भूमि पर जलाया जाता, नारी को
दो पल की जिंदगी में,
उसे कुछ कर दिखाने का,
सह रही अत्याचार,
खोलती क्यों नहीं? मुख
गुम-सुम क्यो हो?
आगे बढ़ो, प्रतिज्ञा करो।
इस दुनिया के लिए,
प्यार लिया और प्यार दिया,
सब ने फिर मधुरस पिया,
एक है, और एक रहेगें।
हम उस आग को बुझ देगे,
जिसमें जलाई जाती, नारी
हम मिटा देगे उन लोगों को,
जो देते है जिंदा चिता को आग,
अब न जलाने देगे नरी को,
भेद-भाव न होगा, मन में
भाव एकता का होगा।
दो पल की रोटी की समस्या बनी थी,
ले पा न रहे थे, चैन की साँस
नए सरकार की,
नए योजना कुछ कर दिखाएगी।
मंहगाई न होगा देश में,
सबक जीवन सफल होगा।
बच्चे रास्ता भटक कर,
गलत रास्ते न आपनयेगें।
बच्चे फूल की तरह कोमल,
जीवन को नर्क न बनायेगें,
बच्चे देश की रीढ़ है।
बच्चे के बचपन से,
खेलने न दिया जाएगा।
बल मजदूरी न होगा, देश में
भाव महानता का होगा।
प्रयोग बाहुल्य होगा, कम्प्यूटर का
ग्रहण करेगा, मशीनी मस्तिष्क।
प्रप्त करेगा,खोए गौरव को।
धीमी है, विकास की गति।
और तेज हो जाएगा।
नए-नए उद्दोग की स्थापना होगा,
उद्दोग का जाल बिछ जाएगा।
गरीब न होगा, देश में
सबको रोजगार प्रप्त हो जएगा।
भारत सदी से शांति का,
पुजारी रहा हैं, रहेगा
कभी भी युद्ध के पक्ष में नही रहेगा।
आतंकवाद की समस्या का ,
समाधान शांति पूर्ण ही जाएगा।
भारत का भविष्य,
उज्ज्वल हो जाएगा।
आपसी भाई-चारे का,
वातवरण हो जाएगा।
देश में राम-राज्य होगा,
भाव एकता का होगा।
भारत की धरती है,
संस्कारों से भरी
हर पल आनंद है,
इस धरती पर।
अमृत पीना सीखा है, प्रेम का
नफरत न होगा, मन में
भाव एकता का होगा।
हमारा धर्म है, मजहब
हमारी संस्कृति है, सभ्यता
हमारा नारा है, देश प्रेम
हमारी शान है, मंदिर-मस्जिद-गिरिजाघर
हमारा भाव है, अनेकता में ही एकता
यही है, भारत की पहचान
कभी-कभी मुझे सन्देह होने लगता है।
की मेरा सपना साकार होगा भी या नहीं।
कठोर पारीश्रम ही सफलता की कुँजी है।
यदि लोगों ने निश्चय कर लिया,
तो सपना साकार हो कर रहेगा।
नहीं तो नेता की दुम हो कर,
कटने से उसे को बचाते फिरो,
देश को बदनाम करते फिरो।
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