दोस्त(ii)

  1. क्षितिज उपाध्याय “किशोर”

हर आदमी के दोस्त
एक संबधी होता है।
दोस्ती टूटने से ,
पहले संबध टूटता है।
संबध से पहले,
विश्वास से पहले,
दिल।
अलग होता है,
जैसे दीवार से,
अलग होता है,
ईंट।
और एक
छेद बन जाता है।
भीतर का सब,
बाहर का आँखों का ,
हिस्सा बन जाता हैं।
दोस्त बन जाता हैं,
दोस्त का दुश्मन,
बिखर जाता हैं।
जैसे, किसी फूल की,
पंखुरी की तरह,
की पंखुरी देखकर,
कठिन हो जाता है,
पहचान पाना।
की यह किस फूल का,
देह का हिस्सा है।

13 thoughts on “दोस्त”
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