दीपावली

   डॉ० जी० भक्त

दीपो का त्योहार दिवाली ,
सबके मन को हरती है ।
जगमग – जगमग दीपक जलते
धरती सुन्दर लगती है । ।
घर दरवाजे सभी सजाते .
हँसते – गाते आते है ।
नयी उमंगें लेकर मन में
सबको गले लगाते है । ।
दीये जलते घर आंगन में
छत पर शोभा न्यारी है ।
बिजली की झिलमिल के आगे
हीरे मोती खाली है । ।
दीप पटाखे वो फुलझड़ियाँ ,
धुम – धड़ाके की आवाज ।
गढ़ – गड़ करता व्योम बमों से ,
सोना मुश्किल लगता आज । ।
गाँव – गाँव में नाटक मेला ,
लक्ष्मी पूजा को है होड़ ।
सभी नागरिक निकल पड़े है ,
घुमने – फिड्ने घर को छोड़ । ।
भेद – भाव को भूल पड़े है ,
जाति रेग को छोड़ चले है
प्रेम और सम्मान भरा दिल ,
सबके आगे खोल चुके है । ।
मिटी गंदगी , मिट गये मच्छर
मिटे कु – विचार जन – मन से ।
दूषित मत करना वातायन ,
आतिशवाजी – प्रदुषण से । ।
ये भाई तुम भले लोग हो ,
प्रकृति और परम्परा के पोषक ।
दोष मिटाना स्वस्थ बनाना ,
इसका है उद्देश्य यह बेशक । ।
अमावश्या की काल रात्रि में ,
जैसे दोपो की उजियाली ।
वैसे ही फैले जन – मन में ,
स्नेह और समता को ताली । ।

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