गीत बनकर जी रहे है
क्या सुनाउँ गीत
क्या श्रद्धांजलि अर्पित कर मैं ।
दर्द लेकर इस हृदय की ,
आह चर्चित क्यों कर मैं ।।
बोधकर विज्ञान का ,
यह मान लेना है जगत में ।
जन्म का उल्लास ही
अवकाश पाता है मरण में । ।
कान्ति की काया न देती ,
शान्ति का संदेश क्षण भर ।
वेदना की पीर लेकर
सो सका नहीं निंद भरकर । ।
शान्ति का संदेश ,
देता है जगत में कर्मयोगी ।
कांति की शुरुआत करके
सो गया है भर्मभेदी । ।
हम खड़े है आज
उनकी याद में लेने प्रतिज्ञा ।
कर गया जो कार्य ,
उसको भूलना होगी अवज्ञा । ।
चेतना के व्यार में
वह जाये आडम्बर सभी ।
रुढियों की ओट में
भरसक नही आये कभी । ।
जनजाति के उत्थान में ,
निर्माण में कल्याण में ,
उत्सर्ग का संकल्प लें ,
हर दलितजन परित्राण में । ।
बन जाये चिर स्मृति उनकी ,
हो सुवासित धूल – कण भी ।
इस डगर के हर कदम पर
रेख बन जाये लगन को । ।
कर रहे है गान सारे
पूज्य ऋषि के , ओ सितारें ।
गोत बनकर जी रहे है ,
विश्व में बापू हमारे । ।
डॉ0 जी भक्त,