रंग बदलती दुनिया

क्षितिज उपाध्याय “किशोर”

इस रंग बदलती दुनिया,
इंसान की नियत ठीक नही।
क़भी वों देवता या फिर,
कभी शैतान होता हैं।
रंग बदलता गिरगिट-सा,
अजब का वह इंसान होता है।
कभी वों दोस्त या कभी फिर,
कभी दुश्मन होता है।
रंग बदलता गिरगिट-सा,
अजब का वह इंसान होता है।
कभी वों बुजुर्ग या फिर,
क़भी नवजवान होता है।
एक के साथ रह कर,
वह दस का यार होता है।
न निकला करों, तुम
सज-धज कर, इस दुनिया में।
इस रंग बदलती दुनिया,
इंसान की नियत ठीक नही।
नहीं तो इस दुनिया में,
बूढ़े भी जवानी की,
दुआ मागने के कम नहीं।
इस रंग बदलती दुनिया,
इंसान की नियत ठीक नही।

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