प्रेम शिकार

क्षितिज उपाध्याय “किशोर”

मेरे दिल की बगिया में फूल बन आयी थी,
भावों के बगिया में भौरा बन गुनगुनायी थी,
साथी बनकर मंदिर में खुशियों को सजायी थी,
दोस्त रूप में आकर सपनों सौंदर्य बढ़ायी थी।
इक शुभकामनी-सी , इक पावन दुआ थी, तुम
समय को बदलने में न देर लगी।
वह भी नाता तोड़ चली ,तुम
लहर तो लहर है, वह आगे बढ़ गयी।
मैं तो इंसान हूं, मुझे को पीछे छोड़ गयी, तुम
जैसे आज भी हर पल हर क्षण में सम्मिलित हो, तुम
हमारी हर एक साँस , हर आस में याद हो, तुम

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *