दिल कहत हैं।

क्षितिज उपाध्याय “किशोर”

जरा आगे देखो,
जरा गौर से देखो,
जरा ध्यान से देखो,
जरा मेरे रूप को देखो,
जमानें के पीछे क्या हैं?

मेरे आँखों को देखो,
क्या? मेरे आँखों में जवालाजल रही है,
क्या? मेरे साथ अत्याचार हुआ है,
क्या? मेरे साथ अन्याय हुआ है,
क्या? मैं अभागा हूँ, या अनाथ हूँ,
क्या? मैं बेसहारा हूँ।

क्या? तुम अधिकार दिल सकती हो,
क्या? तुम सफलता दिला सकती हो,
क्या? समाज में उँचा उठा सकती हो,
क्या? तुम करोगी!

तुम तो अमीरों के लाल,
फूलों में खेलती हो।
मखमल पर सोती हो,
दिलों से खेलतीं हो।
तुम क्या ? जानोगी दिल का दुःख !
तुम क्या ? जानोगी दिल में क्या होता है।
आँखे क्यों रोता है।

जरा मुझे भी जीने दो,
और खुद जियों।
जरा गौर से देखों,
जरा ध्यान से देखो,
जमानें के पीछे क्या हैं?

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