जीवन पथ
नदियों के पावन तट पर , प्रमुदित मन मानव बैठा ।
था सोच रहा जीवन का , पथ सुन्दर संगम जैसा ।।
जो प्रगत प्रपात सरीखा , प्रवाहित निर्मल यश हो ।
निःशब्द छलकता जल सा , सस्वर लहरों का लय हो ।।
उद्याम जगत का जीवन , जुड़कर किरणों के पथ से ।
चिड़ियों का कलव गुंजन , सरसाता निशदिन नभ से ।।
उस जीवन की लहरी में , सोती – जगती यह सृष्टि ।
तारों की झिलमिल झांकी , करती आकाशी वृष्टि ।।
भर कर मन मोद पिरोया , चंदा की सौम्य कला से ।
उर में आभा – सी आयी , छनकर उस तिमिर घटा से ।।
विश्राम नहीं , शान्ति है , चिरजीवन ही लक्षित है ।
इस धरती के आंगन में , दिन रात जहाँ चर्चित है ।।
सुख सरिता की मृदुमाया , कर्मो का दामन थामे ।
है गरज – गरज कर कहती , अर्पित हो कर्म कथा में ।।
सो मौन व्यथित वह मानव , अवलम्ब धैर्य का पाया ।
ली बाँध गाँठ मानस में , उत्साह हृदय में लाया ।।
तब तक अम्बर में छायी , लाली प्रभात की कुसुमित ।
फूलों के सौरभ से मिल , मुक्ता बन भू पर सुखरित ।।
हो प्रकट दिवाकर जगके . नहलाया उषा किरण से ।
जा जुड़ इस जीवन पथ से , ले मुक्ति जरा मरण से ।।
यह सुबह नहीं नव जीवन , यह अंत नहीं संध्या का ।
सुख – दुख का खेल मिचौनी , यह क्रम है अमा – प्रभाका ।।
चिर शान्ति नहीं कोलाहल , शुभ चिंतन और उद्बोधन ।
कर बोध सतत निज मन में , यह कभी नहीं सम्मोहन ।।
सब दिन आती रहती है , नूतन प्रकाश की बेला ।
जीवन उसमें सरसाता , तू केवल नहीं अकेला ।।
यह धरती है संसाधन , साथी साधक हम उसके ।
है धर्म हमारा इस पर , जीवन जीना है बच के ।।
सुख सरिता नहीं अमरता , वह मृत्यु का कारक है ।
सम्मोहन उसका त्यागो धातक कारक नाशक है ।।
यह बोध हृदय में आया , जागा युग – धर्म जगत का ।
बस प्रेम कर्म का सम्बल , शास्वत चिर अमर भरत – सा ।।
नहीं बंधन कहो इसे तुम , मुक्ति का साधन जानो ।
संतुष्टि कर्म में पाकर , चिर जीवन को पहचानो ।।
है श्रेय कर्म जीवन में , अर्पित हो जन पर जाये ।
वह श्रेय नही जिसका फल , अपनों में सिमट समाये ।।
फल मीठा सबसे प्यारा , जो जनहित को सरसायें ।
है काल – कूट वह सुख , जिसका ऋण बढ़ता जाय ।।
यह रोग , शोक बन्धन जो जग जुटा रहा जीवन में ।
है न्याग एक ही औषध , जो तुष्टि दे परिजन में ।।
त्याग तुष्टि का संगम ही ,
है प्रेम जगत में ।
बिना एक का फलित ,
प्रेम कभी दिखाना पथ में ।।
मूल्य त्याग का मिलता ,
ही है कभी न भूलों ।
अगर भूल हुई कुछ भी ,
तो जल्दी उसे कबूलो ।।
( डा ० जी ० भक्त )
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