गणतंत्र दिवस और भारत वर्ष
भारत के लिए गणतंत्र ।।
संस्कृति का है मूलमंत्र ।।
जनतंत्र का भाव है निर्मल ।
त्रेता युग की कथा समुज्जवल ।।
रधुकुल में थे नीतीवर नृपति ।
थे विख्यात नाम वर सुमति ।।
वैशाली के भूप सुशोमित ।
शासित था प्रत्यक्ष गणतांत्रिक ।।
सप्त सहस्त्र सत सप्त सप्त फिर ।
सांसद करते थे शासन चिर ।।
आयावर्त की गाथा महिमा ।
गाती सदा बिहार की गरिमा ।।
गदर अठारह सौ सत्तावन ।
गरजा एक वार चम्पारण
बापू का नंतृत्व वहाँ पर ।
देश- -रत्न का सम्वल पाकर ।।
सत्य अहिंसा के बल पर जब ।
मिली आजादी भारत को तब ।।
गणतंत्र का बना विधान ।
लेकर उतरा लक्ष्य महान ।।
सत्याग्रह में जन का साथ ।
सत्ता में जन जन का हाथ ।।
मताधिकार का संबल पाया ।
भारत को गण राज्य बनाया ।।
उन्नीस सौ बावन जनवरी ।।
टूटी भारत माता की हथकड़ी ।।
उस दिन हम गणतंत्र मनाएँ ।
अपना राष्ट्र ध्वज लहराएँ ।।
लेकिन , अपना कहते हम शरमाते ।
उसके पीछे है कुछ बातें ।।
पूराकर दिखलाना हमको ।
एक पंथ अपनाना सबको ।।