त्योहार और मानव के व्यवहार छठ व्रत चैत्र मासीय

डा० जी० भक्त

है विख्यात भारत की धरती सदा धर्म से सिंचित ।
फलती और विहसती सब दिन पर्वों की जो प्रथा प्रचलित ।।
प्रकृति के प्रांगण सजे-धजे, मानव मन मंदिर हर्ष लिए।
नव पल्लव पुष्प फलों से विनमित मानो ये करवद्ध खड़े ।।
फल मूल अन्न व्यंजन का अर्पण अर्चन पूजन और नमन।
हास और उल्लास से पूरित बाल वृन्द करते अभिनन्दन ।।
माताएँ वनिताएँ घर-घर जुटती गाती गीत नवीन।
नया वर्ष ऋतु और फसल के पावन पर्व हर वर्ष पुनीत ।।
नयी चेतना, नूतन प्रण, प्रसाद निवेदित सदा हृदय से।
हे अन्नपूर्णा, धरती माता, छठ की याद में सब दिन तरसे ।।
धन-धान्य, वरदान, प्राण, सुदीर्घ स्वस्थ जीवन के सार।
बना रहे यह भाव जन-जन में अमर रहे ये पर्व त्योहार ।।
पर्वों की संस्कृति समाज में एकता और सद्भाव जगाती।
इसी हेतु हर बार वर्ष में छठ पर्व सर्वत्र मनाती ।।
श्रद्धा आस्था और जागरुकता, पात्रता, भक्ति भाव भरा हो।
तभी पर्व की पूर्ण सफलता और भव्यता हृदय शुद्ध हो।।

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