भारत की आत्मा धन और बल नहीं, जन-जन से प्रेम करती है।

डा० जी० भक्त

1
है प्राकृत परिवेश सृष्टि का सबसे उत्तम।
जिसकी गाथा गाते सारे देव नरोत्तम ।।
नदियाँ गाती गीत पवन पंखा झलता है।
पर्यंत प्रेरित करते ऊपर ही बढ़ना है।

2
सृष्टि का सौरभ पा जगत सतत जीता है।
मन में भर आनंद कर्म का फल पाता है।
एक ही सत्ता सदा विधाता जो कहलाता ।
उसकी महिमा से वारिद जगको नहलाता ।।

3
सूर्य चन्द्र नक्षत्र विश्व को ज्योति देते ।
क्षितिज, व्योम, अंतरिक्ष उदधि जो पोषण करते ।।
उनके हम कृता बने कर पूजन अर्चन ।
उनकी भक्ति में अर्पित है तन मन जीवन ।।

4
जड़ जीवन उद्यान बने पोषण पालन में ।
जड़ता में पल्लवन प्राण के चेतन मन में ।।
मानव है उपहार सृष्टि का सजग सचेतन ।
इसने सीचा अखिल विश्व के बन और उपवन।।

5
विद्या वैभव पाणी चिन्तन और मनन का,
सोच और संवाद ज्ञान का शीतल चन्दन ।
हित अनहित का भाव विवेचन सुख और दुखका,
रचकर वेद शास्त्र उपनिषद और स्तवन ।।

6
प्रेम दया का पाठ विश्व को जोड़ रहा है।
ज्ञान और विज्ञान भक्ति जो मोह रहा है।
एक ही मानव सत्य जो ऊपर इसको लाया।
इसने ही दुनियाँ को नयी दृष्टि दे डाला।।

7
कला और साहित्य जुड़ा जब उन जीवन में ।
कर पाया विस्तार सुजीवन का जन- जन में ।।
आज गगन धरती समुद्र बन एक धरातल ।
वैश्वीकरण उदारवाद का एक ही समतल ।।

8
मार्ग बना समृद्धि शान्ति प्रगति का पावन ।
समरस जीवन, प्रेम पल्लवन और जागरण ।।
यह संस्कृति भारत की जग को लुभा रही है।
सत्य न्याय के लिए सदा से जूझ रही है।

9
तथापि है यह देश विविधताओं से जकड़ी।
किन्तु यही विभूति बनी नहीं मज़बूरी।।
इसके कारण ही इसने संघर्ष सहन कर ।
अपनी गरिमा को संरक्षित किया यतन भर ।।

10
दुनियाँ वालो आज अणु परमाणु पर तू,
आयुधशक्ति के बल पर हो गौरवशाली ।
लेकिन हम जनशक्ति त्याग और सहनशील बन ।
देते है संदेश अहिंसा शान्ति निवेदन ।

11
महावीर बुद्ध, गाँधी और ईसा जैसे ।
मानव हुए महान त्याग तप ज्ञान ज्योति से।।
सुख शान्ति के लिए अहिंसा एक पहल है।
चरणों में झुकना संजीवन ही सबल है।।

By admin

One thought on “भारत की आत्मा धन और बल नहीं, जन-जन से प्रेम करती है।”
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