“ख़ुशी आज-कल”

सुरज कुमार (सीवान, बिहार)

ढूंढते रहते हो खुशी
टि्वटर फेसबुक इंस्टाग्राम पर ।
कभी नजर उठा कर देखो,
अपने घर की दहलीज पार कर l ।
क्या उठ चुका है विश्वास
अपनों के प्यार पर ।
ढूंढते रहते हो खुशी
टि्वटर फेसबुक इंस्टाग्राम पर ll
क्या कमाल का वक्त है जनाब
जिसे देखा तक नहीं,
उससे मोहब्बत करने का है भूत सवार ।
मिलती है ठोकर,
दोषी ठहराते हो सारे जहां को ।
मिलती होगी मोहब्बत अपनों से भी ज्यादा,
जो जाते हो वहां बार-बार को ll
जरा भी वफ़ा मिले
जल्द लौट आना शाम पर,
ढूंढते रहते हो खुशी
टि्वटर फेसबुक इंस्टाग्राम पर l
कभी नजर उठा कर देखो
अपने घर की दहलीज पार कर ll
क्या है आधुनिकीकरण
जो खोए हो तुम इस कदर,
जहां कोई किसी का ना होगा ।
शोऑफ की दुनियाँ में
लहराओगे अपना परचम,
पर याद रखना,
उस दुनिया में कोई तुम्हारा अपना ना होगाl
क्यों भाग रहे हो इतना,
वफा के इंतजार पर
ढूंढते रहते हो खुशी,
टि्वटर फेसबुक इंस्टाग्राम परl
कभी नजर उठा कर देखो,
अपने घर की दहलीज पार कर ll
डिजिटलाइजेशन की दुनियाँ में
अब अपनों का क्या काम है ।
छोड़कर अपनों को
मॉडर्न होने का जो नाम है । l
क्यों खो गए इतना,
जो अब तुम्हारे ही नजरों में
अपने गवार हैl
देखते ही अपनों को
सोचते हो अपनी शान पर,
ढूंढते रहते हो खुशी
टि्वटर फेसबुक इंस्टाग्राम पर l l

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