ऐ वक़्त

बिपुल रंजन (सिवान, बिहार)

ऐ वक़्त ! चल तेरे साथ चलते चलते , तेरे चमत्कार देखेंगे ।

मंज़ूर है कि कभी अपनी जीत तो कभी अपनी हार देखेंगे ।

चलो मिल के बदल देते हैं ना सब कुछ ,

कब तक कहेंगे इस दफे नहीं अगली बार देखेंगे ।

सोचो ना कौन जुर्रत् करेगा कुछ गलत करने की ,

जो हमें ख़िलाफ़ में कमर कस के तैयार देखेंगे ।

हत्या , रेंप , भ्रष्टाचार आदि हावी हो रहे है पन्नों पे ,

तमन्ना है इन सबसे वंचित कभी किसी दिन का अखबार देखेंगे ।

शायद बहुत खुश होंगे ना गांधी , सुभाष और भगत ,

जो हमारी आँखों में सदा क्रांति की अंगार देखेंगे ।

अरे ! क्या खाक ! सब तो लगभग वैसे ही हैं .

बहुत देख लिया , अब कब तलक बदल बदल के सरकार रखेंगे ।

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