सावन आयो रे

डा. जी. भक्त

सावन आयो रे , बहुत बदलाव लायों रे ।
सरिव सावन………………………………..रें ।।
सब दिन सावन था मन भावन , आज नसावन रें ।
तेज हवा दिन रात है चलती धरती तपती रें ।
खेत सूखती , बीज न उगता , सूखा छाया रे ।। 1 ।।
वर्षा गयी , किसान है रोता , धान फसल गयी मारी ।
हाहाकार पड़ी गावों में सुख की आस विसारी ।।
बिनु पानी पोखर सब खाली , गिरा जल स्तर रे ।। 2 ।।
आज कृषक बदहाली झेलें , वारिस नही तुफान ।
बिजली गिरे , प्राण की हानि ऐसी है बरसात ।
बच्चे और विरहिनी पावस हेतु मचलते रे ।। 3।।
बढ़े प्रदूषण , तपती धरती , हरियाली का हास ।
चक्रवात और बाढ़ की हालत , नहीं कोई खुशह्यस ।।
मोर मोरनी मेढ़क पर भी संकट छायो रे ।। 4 ।।
साबन टूटा , नशीब ही फूटा , सब कुछ लूटा रे ,
उपज गयी , रोजगार न मिलता भूखों मरता रे ।
कितना कहूँ सरिव तुमकों , राशन नहीं मिलता रे ,
जारे सावन तू निर्मोही , विरह सताता रे ।
सावन आया रे लेकर बदलाव आयो रे ।
सरिव सावन आया रों ।।5 ।।

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