वन जीवन Forest life hindi poems poetry kavita balkvita Dr. G. Bhakta Xitiz

 वन जीवन

एक दिन गाँव का चूहा निकला अपने बिल से ।

जाकर बोला भालू काका ! कहता हूँ मैं दिल से ।।

बड़ा जुर्म है हम जीवों पर जीना अब मुश्किल है ।

हर चिजों में जहर मिला है , खाना नामुमकिन है ।।

बोला भालू – ठीक बात है , मेरा भी तो यही हाल है ।

हूँ खेल दिखाता दिनभर मालिक मेरा मालोमाल है ।।

आकर बोला बन्दर भाई ! सुन लो मेरी कहानी ।

दाँत दिखाता फिरूँ गाँव भर , कितनी है हैरानी ।।

बिल्ली बोली बड़ा कठिन है दूध दही का जग में ।

कुत्ते को भी दूध भात की दिक्कत रहती घर में ।।

सब ने किया विचार एक दिन चलकर बिल्ली भाई ।

डालूँ धरना सभा भवन पर , कैसी सत्ता आई ।।

न्याय और अधिकार हमारा जब तक नहीं मिलेगा ।

जंगल के जीवों का भी अब वोटर लिस्ट बनेगा ।।

शाकाहारी , मांसाहारी , दो दल मेरे होंगे ।

चिड़ियों और मछलियों को भी राजनीति में लेंगे ।।

घोंघे , केकड़े और फतिंगे होंगे आदिवासी ।

मानव के चंगुल से हमको लेनी है आजादी ।।

चमड़ा , अन्न , दूध और चर्बी , मधु , मोम और हड्डी ।

मांस और अंडे का शोषण करके लेते गद्दी ।।

जाती धर्म भाषा का झगड़ा , कभी न होगा भाई ।

एक अखण्ड राज्य जंगल का इसकी ठनी लड़ाई ।।

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