अपना गाँव Apna Village hindi poems poetry kavita balkvita Dr. G. Bhakta Xitiz

अपना गाँव

 अपना गाँव निराला है ।
 चारो ओर उजाला है ।
 बिजली की जगमग में देखो ,
 हर मानव मतवाला है ।।
 घर में नारी खुशी मनाती ,
 कृषक न फुले समाते हैं ।
 हरी – भरी खेतों से हरदम ,
 मस्ती मौज मनाते हैं ।।
 हरे – भरे हैं बाग बगीचे ,
 फल – फूलों से लदे हुए ।
 उनकी शोभा निरख – निरखकर
 सुख के अंकुर खड़े हुए ।।
 खलिहानों में फसल रखी है ।
 घर में भरा अनाज रखा है ।
 गोशालों में गाय दुहाती ,
 गाँव बड़ा खुशहाल बना है ।।
 हर पेशे के लोग बसे हैं ,
 हर चिजें उपलब्ध यहाँ पर ।
 सस्ता शुद्ध सुलभ है सबकुछ ,
 स्वर्ग बसा है भू – के ऊपर ।।
 सब शिक्षित सब लगे काम पर ,
 नौकरी और परदेश कमाते ।
 अर्जन कर अपनी मेहनत से ,
 सुन्दर – सा घर द्वार सजाते ।।
 खुल गये है स्कूल यहाँ पर
 अस्पताल उद्योग खुला है ।
 पानी , बिजली , सड़क गाँव में ,
 जनता में उत्साह जगा है ।।
 पर्व और त्योहार मनाते ,
 मंदिर मस्जिद में सब जाते ।
 भोज और बारात यहाँ पर
 बच्चों में उत्साह जगाते ।।
 गाँवों की धरती – सा सुन्दर ,
 होगा क्या कोई स्वर्ग कहीं पर ?
 आओ , हम मिल शीश झुकाएँ ,
 अर्पित हो धरती के ऊपर ।।
One thought on “अपना गाँव, अपना गाँव निराला है, चारो ओर उजाला है ।”

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