जीवन , सत्ता और सम्मान Life, power and honor Dr. G. Bhakta Hindi poems

 जीवन , सत्ता और सम्मान

जन से जग , जग से जनजीवन ,

जीवन से जग का विस्तार

जग में जीवन से जन सत्ता ,

जन सत्ता से जग उद्धार ।।

 सत्ता का उत्कर्ष बताता

 जग जीवन का व्यापक भाव ।

 इससे ही संस्कृति है फलती ,

 विश्व प्रेम से सदा लगाव ।।

 सूरज चन्द्र सितारे धरती ,

जंगल जीव जगत के प्राणी ।

ब्रह्म जीय प्रकृति के अन्तर

चेतन मन कहते है ज्ञानी ।।

 इसी चेतना के प्रकाश में ,

 गति का चलता रहा प्रवाह ।

 उसी प्रवाह में जीवन का रस

 विविध कर्म का किया प्रयास ।।

कर्म ही जीवन , कर्म ही सृजन ,

कर्म से सृजन किया विकास ।

कर्म ही पालक , कर्म ही पोषक ,

अहित कर्म से सदा विनाश ।।

 कर्म पूज्य है , सदा प्रकाश्य है ,

 कर्म ज्ञान का प्रति फलन है ।

 कर्म – ज्ञान – विज्ञान कला है ,

 कारण और प्रभाव मिला है ।

कर्म प्रवर्तक कर्म विसर्जक ,

कर्म ही ईश्वर का प्रतीक है ।

कर्म प्रतिष्ठा , कर्म अनादर

कर्म विभेदक , सम्बर्द्धक है ।

 कर्मोद्वारक , कर्म सचेतक ,

 कर्म जाति की है पहचान ।

 कर्म , धर्म , जीवन , प्रकरण

 कर्म कभी जीवन की शान ।।

इन्ही कर्म विन्यास से निःसृत ,

वैभव का विराट भंडार ।

और अनन्त लक्ष्य का सृजन

अखिल विश्व का किया प्रसार ।।

 ब्रह्म सत्ता का प्रतिफलन है .

 कर्म अनन्त सत्ता का कारक ।

 कर्म सफलता के विपाक बस ,

 बनता सर्जक और उद्धारक ।।

जन सत्ता जीवन सत्ता से

ताल मेल रखना उपयुक्त ।

इससे इतर विखरता जीवन

देह प्राण विन अनुपयुक्त ।।

 मानो सत्ता से पोषित है .

 जीवन और जगत का लक्ष्य ।

 जीवन सत्ता के मिटते ही ,

 कहो कौन किसका है भक्ष्य ।।

इसी तरह सोचो मित्रों तुम ,

बाल – वृद्ध – युवा – नर – नारी ।

सत्ता के संयम का मिटना

कितनी दूभर दुनियाँ सारी ।।

 चेतो मानव इसी जगत में ,

 नृत्य प्रलय का होता आया ।

 धन – बल – साहस अथक प्रयास भी ,

 विगत चूक से बच नहीं पाया ।।

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