जागृति का उद्घोष Awakening awakening Hindi poems Dr. G. Bhakta

 जागृति का उद्घोष

 जागो भारत के लाल तन्द्रा त्यागो ।

 ये भोग व्यसन अपराध मनुज से भागो ।।

 न्यायार्थ भूमि पर जमों , धैर्य अपनाओ ।

 सत्यार्थ स्नेह सद्भाव शील सरसाओ ।।

 जागृति के पथ पर बढ़ो विवसता छोड़ो ।

 उद्याम जगत के सभी अनैतिक तोड़ो ।।

 बढ़ चलो लक्ष्य की ओर कदम मत पीछे रखना ।

 है सदा श्रेय सत्कार्थ न प्रण से पीछे हटना ।।

 चल रही श्वांस उच्छवास विनय श्रम सृजन का है ।

 नही अकेले हो तुम निर्जन निर्धन क्या है ।।

 कोटि – कोटि जन तेरे जैसे ताक रहे हैं ।

 अपने नेता की बोली पहचना हैं ।

 भूलो मत , यह प्रजातंत्र है धोखा ।

 चलो बसाये दुनियाँ अलग अनोखा ।

 जहाँ दुखी और भूखी जनता सुख से सोये ।

 नहीं उपेक्षा और निरादर पाकर रोये ।।

 भूलो तुम अनुदान आरक्षण पाकर जीना ।

 स्वअवलंबन हेतु रक्त को करो पसीना ।।

 ये नेता वलक्षीण कर्म से हीन विरोधी ।।

 सदा स्वार्थ में लीन सिर्फ सत्ता के लोभी ।।

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