ऐ मानव ! तुम बनो महान Hey man!  You be great hindi poems kavita

 ऐ मानव ! तुम बनो महान

 इस विकसित संसार में , भारत वर्ष महान ।

 सबसे पहले इस धरती पर उपजा सारा ज्ञान ।

 उपजा सारा ज्ञान , सभ्यता यही फली थी ।

 संस्कृति की पहचान जगत में यही बनी थी ।

 ज्ञान और विज्ञान धर्म की भूमि यही है ।

 चार वेद , षड़ – शास्त्र की रचना यहीं हुयी है ।

 कहते सारे लोग विश्व को देकर अपना ज्ञान ।

 है पाया सम्मान लोक में , भारत वर्ष महान ।

 इस धरती पर जन्में हम सब ज्ञानवान कहलाये ।

 धर्म – ध्वजा को लेकर हमने दुनियाँ में लहराये ।

 दुनियाँ में लहराये हम सब विश्व गुरु कहलाये ।

 नालंदा और तक्षशिला से ज्ञान रश्मि फैलायें ।

 कला , धर्म , साहित्य , न्याय , दर्शन का दीप जलाये ।

 कृषि , चिकित्सा , गणित आदि विषयों का लाभ उठाये ।

 विश्व का कोना – कोना कहता ज्ञान जहाँ से पाये ।

 भारत सिवा नही दुनियाँ में , जो ज्ञान – स्त्रोत कहलाये ।।

 इतने सारे वैभव पाकर दुनियाँ को ललचाये ।

  भौतिकता की होड़ में हमने गौरव सभी गँवाये ।।

 गौरव सभी गँवाये देश कमजोर हो गया ।

 सदाचार का ह्रास विकास भी रोग बन गया ।

 मूल्य और संस्कार की धर से हुयी विदायी ।

 तब तो सोने की चिड़िया पर बदली छायी ।।

 सत्य अहिंसा पर जो चलता खाता डंडा ।

 राजनीति का चक्र लोभ लालच का फंडा ।।

 बढ़ी आबादी , बेराजगारी , बनी तबाही ।

 इतना दुराचार कि मिलती नही गवाही ।।

 मिलती नही गवाही , संसद सबसे उपर ।

 राजनीति में भाई – भाई है सभी परस्पर ।।

 लूट की ऐसी छूट , गरीबी कहने भर की ।

 ले आपस की फूट समस्या इनती जकड़ी ।।

 इतने फैले रोग निदान में बड़ी तबाही ।

 रोगी हो दो – चार तो अच्छा , बढ़ी आबादी ।।

 देह प्राण की एकता का मर्म जानो ,

 इन्द्रियों के भोग को जो कर्म कहते ।

 जीव की सत्ता नही , नश्वर तू मानो ,

 प्राण के संचार भर को जान कहते ।।

 सुख – भोग – सम्मान जन की शान जानो ।

 रुप यौवन धन तुम्हारी आन है ।

 प्यार है , बलिदान है तो मान लो ,

 त्याग को मिलता सही सम्मान है ।।

 दीनता में पात्रता पहचान समझो ,

 ज्ञान की गरिमा को एक स्थान है ।

 श्रम सेवा सम्मान सब कुछ दान करना ।

 कर्मशील जीवन ही सदा महान है ।।

 सोच लो दुनियाँ है जड़ तुम चेतना हो ।

 मालनो तुम ही जगत की वेदना हो ।।

 वेदना को चेतना से जोड़ दो ।

 सर्जना का भाव जन में धोल दो ।।

 पहन लो टोपी दया का दान हेतु ।

 देह को दुनियाँ का आश्रम मान भी लो ।।

 फिर भी तेरे कर्म पर विश्वास करना ।

 कौन चाहे इस जगत का भार हरना ।।

 तुम बढ़ो , यदि बढ़ सको , है जगह खाली ।

 कर सको , तो उठ खड़ा हो , आयी लाली ।।

 ताकती सहमी ये दुनियाँ विवस बनकर ,

 तुम रगों में उन सबों के प्राण भरदो ।

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