दुर्गा पूजा Durga Puja poem Dr. G.  Bhakta

दुर्गा पूजा

देवि दुर्गा दिव्यता का पूंज है ।
 नारियों में वीरता से पूर्ण हैं ।
 भारती भारत भवन में गुंज है ।
 संस्कृति के भाव से अदुण्ण है ।।
 कर्म वेदी पर चढ़ाने शीश को
 तू पधारी काटने को बेड़िया ।
 जो दनुज की दानवी सत्ता रही ,
 दलन का एहसास करती बेटियाँ ।।
 अवतरित होकर दस दिशाएँ
 घेर डाली आयुधों के जाल से ।
 नौ कुमारी शस्त्रधारी चलपड़ी
 पर्वतों के शिखर दुर्गम भाल से ।।
 कूदकर रणक्षेत्र में
 हूँकार भर कर ।
 निश्चरों के निकर को
 तू चूड़ कर दी ।
 तू रही माता बहन वनिता
 बघूटी वाम नारी ।
 तोड़ कर माया समर में
 पाँव रखकर , घोस्सारी
 वेदना के पीड़ को ललकार कर तू
 शाति की सरिता से धरती सींच डाली ।।
 शैल पुत्री , ब्रह्मचारी चन्द्रघंटा
 नाम तेरा ।
 कामिनी कुष्माण्ड पाणि
 ज्योतिमति स्कंद माता ।।
 व्यापिनी कात्यायिनी
 बन कालरात्रि तू पधारी ।
 बेध कर धाती दलन कर
 शत्रु का सब दल संहारी ।।
 तेरी महिमा से विजय की
 गूंज हम करते पुजारी ।
 आज आर्यावर्त की भूमि
 धूमिल हो गयी हमारी ।।
 एक आशा है तुम्हारी
 खोल दो वेड़ी करारी ।
 महागौरी सिद्धिदातृ
 ओ महामाया अधारी ।।
 चरण रज को पा तुम्हारे
 तृप्त हो यह विश्व सारा ।
 जो मॅवर में डाल रखा भोग के ,
 तू दो सहारा ।।
 ज्ञान की गरिमा बढ़ाओं
 दूर हो आतंक शोषण ।
 दीनता को क्षीण कर दो ,
 और मिट जाये कुपोषण ।।
 शान्ति की शीतल हवाएँ
 मातु ! तेरे पाँव चूमें ।
 और शिक्षा से सुशोभित
 ज्ञान का अभियान गुंजे ।।
 ( डा ० जी ० भक्त )

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