कौमुदी महोत्सव
शरच्चन्द्र की चारुचन्द्रिका उज्जवल धवल विमल वातायन ।
पूनम का प्रमुदित नभमंडल सुरभित मुखरित कविकुल गायन ।।
आज उपस्थित कुमुद कलिसम संकुल कविजन सुजनसुम्नसम ।
सभा मध्य संगीत – गीत सुरभित कविता सरिता सुर संगम ।।
काव्य कला मर्मज्ञ विज्ञ विधु व्योम पियूष प्रदर्शित क्षिति पर ।
वादक नायक गायक दर्शक श्रवण श्रोत्र मंडप भूतल पर ।।
पायस शुभ्र सुवासिव मधुमय सरस चंद्रिका का उल्लास ।
झूम उठी श्यामल धरती पर सरगम संयम का उच्छवास ।।
धन्य धन्य संस्कृति शारदा , कविकुल कुमुद महोत्सव गान ।
शशि – सौभ्य वैभव विलास यश पायेंगे कविगन सम्मान ।।
सम्प्रतिधटित विपद सुनु सरस्वती असुराच्छन्न मही की यह गति ।
दिव्य दृष्टि ज्ञानामृत सम्पुट नैतिक बौद्धिक जागृति सहमति ।।
हिन्दी का वैभव विलास इनकी गुणवत्ता कभी न खोये ।
दो ऐसा वरदान वादिनी । वीणा गरिमा को संजोयें ।
( डा ० जी ० भक्त )
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