शाहजहां तेरी मोहब्बत छोटी,
पड़ गई इसके आगे।

1:- शाहजहां तेरी मोहब्बत छोटी,
पड़ गई इसके आगे।
दिल्ली से आंशिक को पैदल,
कांधे पर लाने के आगे।
मजदूर था, वो मजबूर हो गया,
रोजगार उससे ही दूर हो गया।
सरहदें तो लांघी थी अमीरों ने,
इन में गरीब मजदूर का क्या कसूर हो गया।

2:-बेवफ़ा निकले वो,
शहर जिनके लिए,
मजदूरों ने जान
लगा दी, साहब।
शहर छोड़ दिया,
सड़क पर धक्का
खाने को, साहब|

3:-उबलते हुए आसुओं के,
प्याले लेकर लौट रहे है।
मजदूर कमाने गए थे पर,
छाले लेकर लौट रहे है।
पहुंच गए अगर घर,
तो खबर कर देंगे।
मौत से भी कह दो,
अभी सफर में है, मजदूर।

4:-सुना है आत्महत्या करने
वालो को  कायर कहते है।
मुसीबतों से हार कर
पीछे हटना मौत है।
पर जब जीने की सब,
उम्मीद खत्म हो जाये तो,
जीना भी जीते जी सजा हैं।
तुम क्या जानो साहब,
मजबूरी कैसी बला है।
जिसके साथ बुरा हुआ है,
ये तो उसे ही पता है।

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