मन्द पवन
मंद पवन पट खोल रहा है ,
प्रियतम को आने की वेला ।
पपीहा गाती गीत विरह का ,
वन – उपवन में सदा अकेला । ।
वधु वसुन्धरा ली अंगराई ,
खोल धुंघट पट सुबह सुनहला ।
पूरव से दिनकर ने फेंका ,
घासों पर मोती का गमला । ।
झूम उठा उपवन का कण – कण ,
खेतों में गेहूँ की बाली ।
सदा गमकते गुलशन ,
उनपर उड़ती चित्रित पंखोवाली । ।
मंद पवन किशलय का हिलना ,
कोयल और भ्रमर का गुंजन।।
सरस वसंती पवन प्रवाहित ,
मधुमय मंजर का मुख चुम्बन । ।
सुवह रंग गोधूलि गुलाल की ,
रंग – विरंगी छटा निराली ।
करती हमसे आज ठिठोली ,
बुरा न मानो आयी होली । ।
डॉ0 जी भक्त,
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